Best Short Story In Hindi- कहानी का सार है की बुद्धिमान लोग ईश्वर से प्रार्थना क्यों नहीं करते? शायद वे उन लोगों को देखकर दुखी है जो प्रतिदिन मंदिर जाते है किंतु फिर भी निराशा के साथ खाली हाथ लौटते है। लोगों ने क्या पाया प्रार्थना करके ? ये सवाल हमेशा उनके भीतर हलचल मचाए रखता है। शायद यही कारण है की बुद्धिमान लोग प्रार्थना करने से डरते है। उनका कहना है जीवन में प्रार्थना केवल एक बार ही करनी चाहिए। दूसरी बार की मतलब पहली बार सही से नहीं की। इस पहेली को समझने के लिए एक बार इस कहानी को जरूर पढ़े।
आस्तिक पिता और नास्तिक बेटे की कहानी
Best Short Story In Hindi
ऐसा हुआ की बंगाल में एक बहुत बड़ा ज्ञानी हुआ। भट्टोजी दीक्षित उस ज्ञानी का नाम था। ऐसे तो वह बड़ा व्याकरण का ज्ञाता था और जीवन भर उसने कभी प्रार्थना न की। वह साठ साल का हो गया। उसके पिता नब्बे के करीब पहुंच रहे थे।
पिता ने भट्टोजी को बुलाया और कहां की, सुन, अब तू बूढ़ा हो गया, और अब तक मैंने राह देखि की कभी तू मंदिर जाये; आज तेरे साठ वर्ष पुरे हुए, तेरा जन्म दिन है। अब तक मैंने कुछ भी तुझ से नहीं कहां। लेकिन अब मेरे भी थोड़े दिन बचे है। कभी मैं चला जाऊ, कुछ भी पता नहीं। अब तेरे प्रार्थना करने का समय आ गया है। अब मंदिर जा। कब तक तू यह व्याकरण में उलझा रहेगा और गणित सुलझाता रहेगा। क्या सार है इसका ?
माना की तेरी बड़ी प्रतिष्ठा है, दूर-दूर तक तेरे नाम की कृति है – पर इसका कोई सार नहीं। और तू अब तक मंदिर क्यों नहीं गया, मैं पूछता हूं। तेरे जैसा समझदार, बुद्धिमान प्रार्थना क्यों नहीं करता ?

तो भट्टोजी ने कहां की प्रार्थना तो एक दिन करूँगा। आज कहते हो, आज ही करूँगा। तैयारी ही कर रहा था प्रार्थना की लेकिन तैयारी ही पूरी नहीं हो पाती थी। और फिर आपको मैं देख रहा हूं की आप जीवन भर प्रार्थना करते रहे, कुछ भी न हुआ। आप रोज जाते है मंदिर और लौट आते है। आपको देखकर भी निराशा होती है की यह कैसी प्रार्थना ! और ऐसी प्रार्थना करने से क्या होगा ? आप वही के वही है। लेकिन अब आपने आज कह ही दिया तो मैं सोचता हूं की अब वक्त करीब आ रहा है, तो आज मैं जाता हूं; लेकिन शायद मैं लौट न सकूंगा।
बाप कुछ समझा नहीं। क्योंकि बाप ऐसे ही प्रार्थना करता था एक क्रियाकांड था, एक सांप्रदायिक बात थी, करनी चाहिए थी, करता था। भट्टोजी वापस नहीं लौटे। मंदिर में प्रार्थना करते ही गिर गए और समाप्त हो गए।…संकल्प!
भट्टोजी ने कहां था, प्रार्थना एक ही बार करनी है, दुबारा क्या करनी? क्योंकि दुबारा का मतलब है, पहली दफा ठीक से नहीं की। तो एक दफा ही ठीक से कर लेनी है, सभी कुछ दांव पर लगा देना है। अगर होता हो तो हो जाए। तो वे कह गए थे, या तो वापस नहीं लौटूंगा या वापस लौटूंगा तो दुबारा मंदिर नहीं जाऊंगा। क्योंकि क्या मतलब ऐसे जाने का?
यह संकल्प का अर्थ होता है। संकल्प का अर्थ होता है: समस्त जीवन को उंडेल देना एक क्षण में। तब दुबारा प्रार्थना करने की जरूरत नहीं है। एक बार राम का नाम लिया भट्टोजी ने और राम के नाम के साथ ही वे गिर गए।
कबीर कहते है, न तीर्थ का पता, न संकल्प का पता; पत्थर, पीपर लोग पूजे जा रहे है : साधो देखो जग बौराना ।
आस्तिक पिता और नास्तिक बेटे की कहानी आपको कैसी लगी कृपा कॉमेंट के माध्यम से जरूर बताए ।
इन stories को भी ज़रूर पढ़ें
Related Posts