एक बार की बात है गंगा राम पटेल अपने नौकरी बुलाखीयां को साथ लेकर तीर्थ यात्रा की तैयारी कर रहे थे। गंगा राम पटेल एक बहुत ही ज्ञानी व समझदार इंसान थे तो बुलाखीयां ने उनसे कहां, पटेल जी मैं आपके साथ तीर्थ यात्रा पर अवश्य चलूंगा किंतु वहां जाने से पहले आपको मेरीं एक शर्त स्वीकारनी होगी।
पटेल – बुलाखीयां ! बताओ क्या शर्त है तुम्हारी ?
बुलाखीयां – तीर्थ यात्रा के दौरान यदि रास्ते में मैं आपसे कोई सवाल पूछता हूं तो आप को उसका उत्तर मुझे देना होगा अन्यथा मैं वापस आ जाऊंगा।
पटेल – मुझे स्वीकार है।
फिर दोनों एक ही घोड़े पर सवार होकर अपनी तीर्थ यात्रा के लिए चल दिए। चलते – चलते दिन ढलने लगा था, रात की काली छाया चारों तरफ फैल चुकी थी। तब वे एक नगरी के पास पहुंचे।

नगरी को देख पटेल ने कहां, बुलाखीयां आज की रात हम यही ठहरेंगे। दोनों ने अपनी सर्व सहमति से वहां ठहरने का निर्णय किया और अपना टेंट लगा लिया । टेंट लगाने के पश्चात पटेल ने बुलाखीयां से कहां, अब तुम नगरी में जाओ और कुछ खाने – पीने का सामान ले आओ। बुलाखीयां ने सहमति में अपना सर हिलाया और पैसे लेकर नगरी की तरफ चल दिया।
जैसे ही बुलाखीयां नगरी के मुख्य द्वार पर पहुंचा तो वहां उसने एक अचंभित कर देने वाला दृश्य देखा जो उसके भीतर सवाल खड़े कर रहा था। उसने देखा नगरी के मुख्य द्वार पर एक बकरा बंधा था और सभी आने – जाने वाले उस बकरे के सिर पर पांच -पांच जूते मारकर आ – जा रहे थे।
यह दृश्य देखकर बुलाखीयां नगरी के अंदर जाने लगा तो पहरेदारों ने उसे रोक लिया और बोले, यदि आपको नगरी के अंदर जाना है तो इस बकरे के सिर पर पांच जूते मारने होंगे, अगर आप ऐसा नहीं करते तो आपको नगरी में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। बुलाखीयां बड़े अचंभे में था लेकिन नगरी में प्रवेश करने के लिए उसने भी बकरे के सिर पर पांच जूते मारे और नगरी में प्रवेश कर गया। ऐसे ही वापिस आते हुए भी पांच जूते मारे और सामान लेकर पटेल के पास आ गया।
वापिस आकर बुलाखीयां ने तुरंत खाना बनाया और पटेल जी को खिलाकर खुद भी भोजन कर लिया। वह सारा कार्य जल्द से जल्द निपटाना चाहता था ताकि उस बकरे के बारे में जान सकें। जिसने उसके मन में सवालों का पहाड़ खड़ा कर दिया था। तो रात को सोते समय बुलाखीयां पटेल जी के पैरों के पास बैठ गया और पैर दबाते हुए बोला, पटेल जी जब मैं नगरी में के मुख्य द्वार पर पहुंचा तो वहां मैंने एक पीड़ादायक दृश्य देखा जो मुझे ना भाया। इस नगरी के लोग कितने क्रुर और पत्थर दिल है जो अपना गुस्सा किसी बेजबान जानवर पर निकालते हैं।

पटेल जी – तुमने क्या देखा मुझे साफ-साफ बताओ ?
बुलाखीयां – जब मैं नगरी में गया तो मैंने देखा कि मुख्य द्वार पर एक बकरा जंजीरों से बंधा हुआ था और सभी आने – जाने वाले उसके सिर पर पांच जूते मार रहे थे। तो कृपा आप मुझे बताइए कि उस बकरे ने ऐसा क्या पाप कर दिया जिसकी उसे इतनी बड़ी सजा दी जा रही है ?
पटेल जी थोड़ा मुस्कुराए और बोले, बुलाखीयां ! यह नगरी कोई ऐसी – वैसी नगरी नहीं बल्कि राजा भोज की नगरी है। और जिसे तुम एक बेजुबान जानवर समझ रहे हो यह कोई मामूली बकरा नहीं है। इस बकरे ने राजा भोज के खिलाफ एक बहुत ही भयंकर षड्यंत्र रचा था।
जिसमें यह काफी हद तक सफल भी हो गया था लेकिन वह कहते हैं ना “पाप का घड़ा एक दिन फूटता जरूर है” तो इस बकरे का घड़ा भी जिस दिन फूटा उसी दिन इसे यह सजा सुनाई गई कि जो भी प्रजाजन नगरी में आए या जाए उसे पहले इस बकरे के सिर पर पांच जूते मारनें होंगे। तो चलो मैं तुम्हें इसकी पूरी कहानी सुनाता हूं ध्यान से सुनना…….
Raja Bhoj Story In Hindi Part-1
अब यहां से पटेल जी ने बुलाखीयां को कहानी सुनाना प्रारंभ किया…….. राजा भोज चौहदा विद्या निदान राजा थे जो उस समय समग्र राजाओं में सबसे बुद्धिमान शासक थे। चौहदा विद्याओं ने राजा भोज की एक अलग ही छवि पूरे संसार में बना दी थी जिसका उन्हें हमेशा ही घमंड रहता था क्योंकि वह समझते थे कि चौहदा विद्या सीखने के बाद विश्व में ऐसा कोई नहीं जो उन्हें बुद्धिमता में हरा सके। लेकिन यह कारनामा किया एक बाजीगर ने जिसने राजा भोज की चौहदा विद्याओं का घमंड तोड़ कर रख दिया।

एक बार एक बाजीगर और बाजीगरानी राजा भोज की नगरी में खेल दिखाने आए। बाजीगर ने वहां मौजूद लोगों से उसका खेल देखने के लिए आग्रह किया। लोगों ने बाजीगर से कहां, “भाई हम तो तुम्हारा खेल देखना चाहते हैं लेकिन हम तुम्हें उसके बदले भिक्षा में क्या दे सकते हैं? एक काम करो, तुम राजा के महल चलो। अगर राजा को तुम्हारा खेल पसंद आया तो वह तुम्हें भारी नाम भी देंगे।” बाजीगर ने कहां, “चलो ठीक है, बहुत सुना है राजा भोज के बारे में मेरी भी बड़ी तमन्ना थी कि एक दिन मैं उनके सामने अपनी कला का प्रदर्शन करूं।
बाजीगर अपनी पत्नी के साथ महल पहुंच गया। लेकिन वहां द्वारपालों ने उसे बताया कि अभी महाराज किसी कार्य में व्यस्त हैं। तुम थोड़ी देर इंतजार करो बाजीगर अपनी पत्नी के साथ वहीं बैठ गया और राजा का कार्य से मुक्त होने का इंतजार करता रहा। आखिरकार लंबे समय के बाद राजा बाहर आए। राजा को देखते ही बाजीगर प्रसन्नता से शीघ्र खड़ा हुआ और राजा भोज के पास जा पहुंचा और बोला;
बाजीगर – महाराज में एक छोटा सा बाजीगर हूं। गांव – गांव घूमकर अपनी कला का प्रदर्शन करता हूं। मेरी बड़ी दिनों से तमन्ना थी कि कभी आपके सामने अपनी कला का प्रदर्शन करू इसलिए आज मैं आपकी नगरी में आया हूं।
राजा भोज ( घमंड में ) – अरे बाजीगर तू क्या मुझे अपनी कला दिखाएगा? मैं चौहदा विद्या निदान राजा हूं। मेरे आगे बड़े से बड़ा ज्ञान भी पस्त है और तू तो एक छोटा सा बाजीगर है भलां तु मुझे क्या रोमांचित करेगा।
बाजीगर – महाराज मैं एक छोटा सा बाजीगर अवश्य हूं, किंतु मेरी कला छोटे नहीं है। मैं आपसे विनती करता हूं। केवल एक बार मेरा खेल देख लीजिए।
बाजीगर की यूं बार-बार विनती करने पर राजा भोज ने हामी भर दी और बोले, “चलो ठीक है, बाजीगर दिखाओ अपना खेल। मैं ना तो मेरी प्रजा ही खुश हो जाएगी।
जब बाजीगर ने अपना खेल प्रारंभ किया तो वहां राजा के साथ उनकी रानियां, मंत्री गण और समस्त प्रजा आ गई। बाजीगर ने अपने थैले से एक रस्सी निकाली और उसे आकाश की ओर फेंका। फेंकते के साथ ही रस्सी लंबी होती चली गई और आकाश में जाकर कहीं अटक गई। वहां मौजूद सभी लोग इस छोटे से नमूने को देख हैरान हो गए। खुद राजा भी सोचने लगे कि रस्सी फेंकी तो छोटी सी थी, लेकिन यह इतनी लंबी कैसे हो गई कि आकाश में ही पहुंच गई?
अब बाजीगर उस रस्सी को जोर-जोर से खींचने लगा, लेकिन रस्सी इस कदर फंस गई थी कि उसे खींच पाना बहुत मुश्किल हो रहा था। फिर बाजीगर राजा भोज से बोला क्षमा करें महाराज मुझे खेल थोड़ी देर के लिए अधूरा छोड़ना पड़ेगा क्योंकि मुझे ऊपर से देवताओं का संदेश आया है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में भयंकर युद्ध छिड़ गया है जिसे शांत कराने के लिए मुझे वहां जाना होगा।
बाजीगर के मुख से ऐसे कथन सुनकर सारी प्रजा और खुद राजा भोज दुविधा में फंस गए। सभी मन ही मन सोचने लगे कि ऊपर देवता की लड़ाई हो रही है और उसे छुड़वाने के लिए उन्होंने इस बाजीगर को याद किया है। राजा भोज ने हैरियत में अपना सिर हिलाया और बोले, “ठीक है बाजीगर पहले तुम देवताओं का युद्ध छुड़वा कर आओ।” लेकिन जाने से पहले बाजीगर ने राजा के सामने एक शर्त रखी।
शर्त थी कि जब तक मैं देवताओं का युद्ध शांत कराकर नहीं आ जाता, मेरी बाजीगरनी आपके पास सुरक्षित रहेगी। इसकी जिम्मेदारी मैं आपके ऊपर छोड़ कर जा रहा हूं और वापस आते ही मैं आपसे सबसे पहले अपनी पत्नी मांगूंगा। राजा एक बार फिर सोच में पड़ गया कि ऐसी कौन सी दुविधा आने वाली है जो इस बाजीगर ने यह शर्त मेरे सामने रखी है। भला इसकी पत्नी को यहां से कौन ले जाएगा?
राजा भोज – ठीक है, मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है। जब तक तुम नहीं आते। तुम्हारी पत्नी मेरे पास सुरक्षित रहेगी।
जैसे ही राजा ने शर्त मंजूर की बाजीगर ने रस्सी पर चढ़ना शुरू कर दिया जो आकाश में जा रही थी। सभी की निगाह बाजीगर पर टिकी थी जैसे – जैसे वह चढ़ता गया उसका आकर छोटा होता गया एक समय ऐसा आया जब वह बदलो में अदृश्य हो गया।
बाजीगर को गए हुए काफी समय हो गया था। वहां मौजूद सभी जन और राजा भोज बाजीगर के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन थोड़ी देर बाद वहां मौजूद सभी लोगों ने एक ऐसा दृश्य देखा जो कल्पना के परे था और लोगों में एक रहस्यमई सवाल बन गया था। उन्होंने देखा आकाश से बाजीगर का एक कटा हुआ पैर आकर धम्म से धरती पर गिरा। कटा पैर देखकर सभी सुन्न पड़ गए। सभी की आंखें फटी की फटी रह गई।
फिर दूसरा पैरा आ गिरा, फिर बाजी घर के कटे हुए हाथ आग गिरे। धीरे-धीरे उसका सारा शरीर टुकड़ों के रूप में जमीन पर आ गिरा और अंत में उसका मुख जिसे देखते ही राजा भोज भी अपने सिंहासन से उठ खड़े हुए।
अपने पति के शरीर के कटे अंग देख कर बाजीगरनी जोर – जोर से रोने लगी। राजा और समस्त प्रजा के मन में कई सवाल उठने लगे। ऊपर क्या हुआ?, कैसे हुआ?, क्यों हुआ? आदि।
दोस्तों राजा भोज के ऊपर हमारे पास कहानियों की पूरी सीरीज है, जिसे हम छोटे – छोटे पार्ट्स में आप तक पहुंचते रहेंगे। राजा भोज की ये कहानियां आपको इंटरनेट पर ओर कही नहीं मिलेंगी। हमने ये सारी कहानियां बहुत शोध करके एकत्रित की है। अगर आप इसमें दिलचस्पी रखते है तो कमेंट करके जरूर बताये।