Raja Bhoj Story In Hindi Part-4
पंद्रवी विद्या की खोज में अपनी यात्रा शुरू करने से पहले राजा ने अपने एक पुराने साथी ‘नाई’ को बुलाने का आदेश दिया। सैनिकों ने तूरंत नाई के पास राजा की सुचना पहुंचाई। जैसे ही नाई को पता लगा की उसे राजा भोज ने याद किया है, वह तुरंत राजा के पास दौड़ा चला आया। राजा ने उसे आगे की सारी योजना बताई और कहां, ‘हमें कुछ वक्त के लिए राज्य से दूर जाना होगा इसलिय आपको भी हमारे साथ चलना होगा।’
नाई ने कहां – ठीक है महाराज जैसी आपकी आज्ञा।
अब राजा ने दो घोडे़ मंगवाए और सफर का जरुरी सामान लेकर हिमालय पर्वत की ओर अपनी यात्रा आरंभ की। तो दोस्त, राजा भोज और नाई दिन में तो सफर करते और रास्ते में कोई नगरी आती तो वही ठैहर कर रात को विक्षाम करते। नाई का काम था नगरी से बाजार में जाकर सामान लाना, खाना बनाकर राजा भोज को खिलाना।

ऐसे ही रात और दिन चलते – चलते कफी दिन बाद राजा भोज व नाई उस जंगल के पास पहुंच गए , चूकी घोडे़ अन्दर नहीं जा सकते थे इसलिए घोड़ो को बाहर ही छोड़कर राजा व नाई तलवार से जंगल में रास्ता बनाते हुए आगे बड़े। आखीरकार इतनी लंबी यात्रा के बाद राजा भोज बाबा अमरा गुरू कि कुटिया ढुढ़ने में कामयाब हो गए।
राजा भोज ने देखा कुटिया का द्रव्य कफी सुनहरा था……बाबा की सुंदर कुटिया बनी है। कुटिया के आसपास रंग – बिरंगे फूल खिले हैं बाबा के धूणों में धुआ उठ रही है, म्रग छाला पर बैठे बाबा तपस्या में लीन है।
राजा भोज और नाई बाबा अमरा गुरु के सामने थोड़ी दुरी पर हाथ जोड़कर बैठ जाते हैं, लेकिन एक सप्ताह हो गया बाबा तो आंखे ही नहीं खोलते तो राजा भोज ने कहां, जब तक बाबा आंखे नहीं खोलते हम आश्रम की साफ – सफाई कर देते हैं और दोनों आश्रम में काम करने लगे नए – नए ओर फुल लाकर लगाए, जंगल से सुखी लकड़ी लाकर धुणा के पास इक्कठी कर दी और आराम से रहने लगे।
एक महिना बीत गया तब कहीं जाकर बाबा अमरा गुरु ने आंखे खोली और अपने सामने एक राजा व एक नौकरी को बैठा देखा जो हाथ जोड़कर बाबा की तरफ जिज्ञासा भरी नजरों से देख रहे थे। बाबा ने कहां, बच्चो मेरे पास आओ और अपना परिचय दो क्योंकी तुम इतने भायंकर जंगल को पार करके मेरे पास आए हो यहां कोई इंसान नहीं आ सकता। आप लोग इतना कष्ठ उठाकर मेरे पास आये हो तो जरूर कोई अवश्य कार्य होगा।
इतनी बात सुनकर राजा भोज व नाई बाबा के पास आए और चरणों में बैठकर राजा भोज ने कहां, ‘हे महाराज में राजा भोज हूं और मैं बड़ी आशा से आपके पास आया हूं, कृपा आप मेरी समस्या का समाधान करें।
बाबा – बोलो बच्चा क्या समस्या है ?
राजा भोज – महाराज मैं पंद्रवी विद्या सिखने आया हूं, कृपा आप मुझे पंद्रवी विद्या का दान दे तो आपकी बड़ी कृपा होगी।
बाबा – ओ हो बालक तु तो बहुत बड़ी समस्या लेकर आया है, किन्तु एक बात बता तुझे मेरा पता बताया किसने ?
राजा भोज – महाराज एक बाजीगर ने।
बाबा – ठीक है परंतु राजन इस विद्या को सिखना हर किसी के बस की बात नहीं, इसमे बड़ी कठीनाई आएगी क्या कर पाओगे ?
राजा भोज – महाराज इस विद्या को सिखने के लिए मैं हर कठिनाई का ढट कर मुकाबला करुंगा कृपा आप मुझे सही राह दिखाइए।
बाबा – तो ठीक है राजन इस विद्या को सिखाने से पहले मैं तुम्हे इसकी शक्ति के बारे में कुछ बताना चाहता हूं। पंद्रवी विद्या है, मरे हुए शरीर को जिंदा करना। लेकिन इस विद्या से अगर आप किसी को जिंदा कर रहे हो तो आप के प्राण उस मरे हुए शरीर में चले जाएंगे और आपका शरीर प्राण हीन हो जाएगा। फिर आप जब भी चाहो अपने शरीर में वापस आ सकते हो। कहने का मतलब है, आप किसी भी मरे हुए प्रणी को जिंदा करते हो तो आपका शरीर मर जाएगा और आप जब अपने शरीर में वापस आओगे तो दूसरा शरीर मर जाएगा।
और हां, इस विद्या को सिखते वक्त आपको केवल एक समय भोजन मिलेगा, वक्त की इसमें कोई समय सीमा निश्चित नहीं है, मालूम नहीं कितना लग जाए। क्या तुम्हे मंजुर है?
राजा – ठीक है बाबा आप जो भी कहोगे मैं करूंगा मुझे आपकी हर बात मंजूर हैं।
बाबा – कल सुबह से आपकी शिक्षा आरंभ हो जाएगी।
दूसरी सुबह बाबा ने राजा भोज को अपने सामने बैठा लिया और मंत्र सिखाना आरंभ कर दिया। अब राजा भोज का पंद्रवी विद्या सिखने का शिलशिला शुरू हो चुका था। लेकिन इसी के साथ शुरू हुआ एक भयंकर समस्या का शिलशिला जिससे राजा अभी अनजान थे। दोस्तों जब राजा भोज को बाबा मंत्र सुना रहे थे तो नाई भी राजा भोज के पीछे बैठा – बैठा मंत्र सुन रहा था और उसने भी राजा के साथ – साथ मंत्र रट लिए थे और वह भी मन ही मन मंत्र का जाप करने लगा।

ऐसे ही राजा भोज की शिक्षा बाहरा वर्ष तक चली। राजा भोज को बाबा जो भी मंत्र बताते उसे नाई भी तुरंत अपने जहन में बैठा लेता यानी रट लेता और जैसे – जैसे राजा मंत्र का जाप करते वैसे ही नाई भी मन ही मन मंत्र का जाप करता रहता। कहने का मतलब बाहरा वर्षो में राजा भोज पंद्रवी विद्या सीख गए और साथ-साथ नाई भी सीख गया।
फिर एक दिन ऐसा भी आया कि बाबा ने कहां, राजन अब आपकी विद्या पूर्ण हो गई है। अब आप अपने राज्य जाकर अपने राज्य का काम संभाल सकते है। और हां एक बात का ध्यान हमेशा रखना कभी भी इस विद्या का गलत इस्तेमाल मत करना। राजा ने प्रसन्न भाव से अपने गुरू की बात का मान रखते हुए हामी भरते हुए अपना सिर हिलाया। अगली सुबह राजा भोज ने गुरु अमरा को प्रणाम कर एंव चरण स्पर्श कर जाने की आज्ञा मांगी। बाबा ने भी अपने प्रसन्नता के भाव मुख पर लाकर उन्हें आर्शिवाद देकर जाने को कहां।
अब राजा भोज नाई को साथ लेकर अपनी नगरी की ओर चल दिए। अब घोड़े तो थे नहीं। इसलिए पैदल ही बातें करते – करते चले आ रहे थे तो दोस्तों अब आगे क्या होता है की नाई के दिल में कपट जाग उठता है। नाई ने मन ही मन एक भयंकर साजिश रच डाली। नाई से राजा भोज बनने की साजिश।
राजा को अपने व्यवहार की ओर आकर्शित करने के लिए नाई गुमसुम होकर बैठ गया। राजा अभी उसकी कुटनीति से बिल्कुल अनजान थे। तो नाई को इस तरह गुमसुम बैठा देखकर राजा ने कहां, नाई क्या बात है तुम बड़े गुमसुम से नजर आ रहे हो।
नाई – महाराज मेरे दिल में एक बात है। आप बुरा ना मानो तो बताऊं।
राजा भोज – नाई ! जो भी बात है खुलकर बताओ।
नाई – महाराज मैं यह कह रहा था कि आपने बाहरा वर्षों के इतने कठिन परिश्रम के बाद यह पंद्रवी विद्या हासिल की है तो आप अगर अपनी सीखी हुई विद्या को एक बार आजमा लेते तो अच्छा रहेगा क्योंकि नगरी में जाकर कहीं आप हंसी के पात्र ना बन जाओ।
राजा भोज – बात तो तुम्हारी बिल्कुल ठीक है, आजमाने में क्या दिक्कत है, चलो आजमा कर देखते हैं।
नाई – महाराजा आप थोड़ी देर यहां बैठिए मैं अभी आता हूं।
नाई थोड़ी दूर गया और एक मरा हुआ तोता उठाकर राजा भोज के सामने रख दिया और कहा महाराज इस मरे हुए तोते में आपके प्राण डालिए।
राजा भोज – ठीक है मैं मंत्र का जाप करता हूं। राजा भोज मंत्र पढ़ने लगे और अपने प्राण तोते में डाल दिए। तोता जिंदा हो गया और राजा भोज का शरीर अचेत होकर गिर गया।
इधर नाई अपनी साजिश में कामयाब होने लगा था उसने मौके का फायदा उठाया और तुरंत मंत्र पढ़कर अपने प्राण राजा भोज के शरीर में डाल दिए। अब
नाई का शरीर भी अचेत होकर गिर गया। कहने का मतलब है राजा भोज तोता बन गए और नाई राजा भोज बन गया।
राजा भोज ( जो की तोते के शरीर में है ) देखकर चकित हो गए की नाई ने यह विद्या कैसे सिख ली ? और बोले – अरे नाई यह तूने क्या कर दिया तू मेरे शरीर में क्यों आ गया ?

नाई – महाराज मैं भी अपनी विद्या आजमा रहा था जो कि मैंने चोरी – चोरी आपके पिछे बैठ कर सीखी है।
राजा भोज ( गुस्से में ) – नाई तुमने अपनी मर्यादा के विरूध जाने की चेष्ठा भी कैसे की। इस अपराध का दंड तुम्हें दरबार में दिया जाएगा। अब तू एक काम कर अपने शरीर में वापस जा और मेरा शरीर खाली कर ताकि मैं अपने शरीर में वापस आ सकू।
नाई – मैं आपको मुर्ख नजर आता हूं क्या ? जो अपने शरीर में वापस जाऊंगा ? बड़ी मुश्किल से राजा बनने का मौका मिला है। इस अवसर को मैं छोड़ नहीं सकता और आप तो एक तोते हो भला आप मेरा क्या बिगाड़ सकते हो। मैं यह शरीर किसी भी हालत में नहीं छोडूंगा। अब मैं भी वे सारे सुख भोगुंगा जो एक राजा प्राप्त करता है।
अब नाई अपने रास्ते का आखरी कांटा हटाने के लिए उस तोते को पत्थर से मारने के लिए भागा जिसमें राजा भोज के प्राण बसे थे। तोता बेचारा क्या करता जान बचाकर भागा और दूर एक ऊंचे पेड़ की टहनी पर बैठकर नाई को देखने लगा और उदास मन से सोचने लगा की जिस साथी पर मैंने इतना भरोसा किया उसी ने मेरे साथ इतनी बड़ी गद्दारी कर दी। अब क्या कर सकता हूं और तोता बैठा – बैठा रोने लगा।
इधर नाई जो कि राजा भोज के शरीर में था। लकड़ियां और फूस को इकट्ठा किया और अपने नाई के अचेत शरीर को जलाकर राजा भोज की नगरी की तरफ चल दिया।
दोस्तों भाग 5 में आप पढ़ेंगे जब नाई राजा भोज के भेष में राज्य में वापिस जाता है तो वहां क्या होता है ? क्या राज्य के लोग उसे पहचान पाएंगे ? खास तोर पर तब, जब वह रानी सत्यवती के पास जाता है, जबकि नाई को मुंछ के बाल के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। इस पर रानी की क्या प्रतिक्रिया होगी ? और राजा भोज जो एक तोता बन चुके है उन्हें अपना शरीर वापिस कैसे मिलेगा ? जानने के लिए बने रहे हमारे ब्लॉग वर्तमान सोच के साथ।
राजा भोज चौहदा विद्याओं का घमंड भाग-1
राजा भोज चौहदा विद्याओं का घमंड भाग-2