Raja Bhoj Story In Hindi Part-2
लोगों ने बाजीगर के कटे अंगों को देख काफी विचार – विमर्श किया। अब जब उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा तो राजा ने उसके कटे अंगों को चिता देने का आदेश दिया। चिता की बात सुनते ही बाजीगरनी उठ खड़ी हुई है और रोते-रोते बोली;
बाजीगरनी – महाराज मैं अपने पति के साथ सती होना चाहती हूं।
राजा भोज और उनकी रानियों ने बाजीगरनी को खूब समझाने की कोशिश की, कि तुम अभी जवान और काफी खूबसूरत हो तो यूं सती होकर अपना जीवन समाप्त मत करो। लेकिन बाजीगरनी ने हट कर ली और बोली, “महाराज या तो मुझे मेरे पति के साथ सती करो वरना मैं यहां मौजूद समस्त जनों को श्राप दूंगी जिसकी पीड़ा से आप लोग कभी उबर नहीं पाओगे।”

श्राप शब्द उस समय बहुत मायने रखता था लोग इससे भयभीत होते थे। खुद राजा भोज भी श्राप का नाम सुनते ही भयभीत हो गए। अब जब खूब समझाने पर भी वह नहीं समझी तो राजा के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा। बाजीगर के साथ बाजीगरनी को सती कर दिया गया।
लेकिन समस्या यही समाप्त नहीं हुई थी। असली समस्या तो अभी आनी बाकी थी। अभी दोनों की चिता ठंडी भी नहीं हुई थी कि राजा और प्रजा ने देखा बाजीगर धीरे – धीरे रस्सी से उतरता हुआ वापस आ रहा था। बाजीगर को यूं उतरता देख वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें खुली की खुली रह गई। एक बार फिर उनके मन में सवालों का तूफान उठने लगा।
अब बाजीगर नीचे पहुंच गया और राजा भोज के सामने आकर बोला तो बताइए महाराज कैसी लगी आपको मेरी कला, मैं आकाश में जाकर वापस आया हूं? राजा और प्रजा एक मूर्ति की अवस्था में बाजीगर को देखते रहे। किसी की भी आवाज मुख से न निकली। सभी लोग एक पल बाजीगर को देखते और एक पल उसकी चिता को जो अभी तो ठंडी भी नहीं हुई थी।
अब बाजीगर थोड़ा गुस्सा होने लगा और बोला कि मैंने इतना अच्छा खेल का प्रदर्शन किया और कोई भी मेरी प्रशंसा नहीं कर रहा है। जब किसी के मुख से बाजीगर के लिए प्रसंता के स्वर नहीं निकले तो उसने कहां, “ठीक है महाराज यदि आपको और आपकी प्रजा को मेरी कला अच्छी नहीं लगी तो मैं आपसे कुछ भिक्षा कि आश भी नहीं रखना चाहता। हम किसी दूसरी नगरी में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। आप मेरी बाजीगरनी को बुला दीजिए। जिसको मैं आपके पास सुरक्षित छोड़ कर गया था।
राजा भोज एक पत्थर की मूर्ति की तरह बाजीगर को देखते रहे। बाजीगर अपनी पत्नी को ढूंढने लगा, लेकिन जब काफी ढूंढने पर भी वह नहीं मिली तो बाजीगर ने क्रोध में आकर राजा भोज पर कलंक लगाना शुरू कर दिया। अब राजा को अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी क्योंकि कोई भी राजा अपने ऊपर यूं लालछन लगते हुए नहीं देख सकता।
राजा भोज – तुम्हारी पत्नी तो तुम्हारे साथ सती हो गई। राजा ने बाजीगर को उसके जाने के बाद सारी कहानी बताई।
बाजीगर – महाराज आप एक कपटी और झूठे राजा हैं। जरूर आपने ही मेरे पत्नी को कही छुपा दिया होगा।
राजा भोज – भला मैं तुम्हारी पत्नी को क्यों छुपाऊंगा?
बाजीगर – क्योंकि आप मेरी पत्नी को अपनी रानी बनाना चाहते हैं। मेरी बाजीगरनी जैसी सुंदर और रूपमती स्त्री पूरे संसार में नहीं है न ही आपकी कोई रानी इतनी सुंदर है। आप एक चरित्रहिन राजा है।
सारी प्रजा सुन्न होकर बैठी रही। राजा भोज ने उसे बार – बार समझाने की कोशिश की, कि मेरा विश्वास करो। मैंने तुम्हारी पत्नी को कहीं नहीं छुपाया । वह तुम्हारे साथ ही सती हुई है। अब तुम अचानक आकर अपनी पत्नी मांगोगे तो मैं कहां से लाकर दूं।
बाजीगर – मैं नहीं जानता था कि एक चौहदा विद्या निदान राजा भी इस कदर झूठ बोल सकता है। मैं स्वयं आपके सामने जिंदा खड़ा हूं तो मेरी पत्नी सती कैसे हो सकती? या फिर आपके मन में कपट आ गया। मेरे जाते वक्त आपने मेरी शर्त अनुसार मुझे वचन दिया था कि जब तक मैं नहीं आता, आप मेरी पत्नी को सुरक्षित रखेंगे और अब जब मैं अपनी पत्नी आपसे वापस मांग रहा हूं तो आप नाटक कर रहे हैं। मुझे आपसे कुछ भी भिक्षा या दान नहीं चाहिए। आप केवल मेरी पत्नी मुझे लौटा दीजिए।

राजा भोज – बाजीगर ! तुम्हें जो सजा मुझे देनी है, तुम दे सकते हो किंतु मैं मरे हुए प्राणी को जिंदा नहीं कर सकता।
बाजीगर – महाराज यदि मैंने अपनी पत्नी आपके महल से निकाले तो, तब आप क्या करोंगे ?
राजा भोज – यदि तुमने बाजीगरनी मेरे महल से निकाल दी तो यह सारा राज – पाठ मैं तुम्हारे नाम कर दूंगा और यदि तुम बाजीगरनी को मेरे महल से नहीं निकाल सके तो तुम क्या करोगे ?
बाजीगर – महाराज यदि मैं अपनी बाजीगरनी को आप के महल से नहीं निकाल सका तो जितना राज – पाठ आपका है इससे दुगना मैं आपको दूंगा।
राजा ने हामी में अपना सिर हिलाया। बाजीगर ने महल में प्रवेश करने के लिए अपने कदम बढ़ाए उसके पीछे राजा भोज उनकी रानियां, मंत्री गण और समस्त प्रजा भी बाजीगर के पीछे – पीछे महल में पहुंच गए।
महल में पहुंचते ही बाजीगर ने जोर से आवाज लगाई – बाजीगरनी कहां हो तुम आ जाओ, हम चलते हैं।”
ऊपर से आवाज आई – “आती हूं जी।” बाजीगरनी एक कक्ष से बाहर निकली और बाजीगर के पास आ पहुंची।
बाजीगरनी को देख राजा भोज और समस्त जन अचंभित हो गए। आज मानो सबके लिए एक ऐसा दिन था जहां सबके सामने सवालों का एक पहाड़ खड़ा हो गया था। लेकिन जवाब का एक कण नहीं दिख रहा था।
बाजीगर – अब बोलिए राजा क्या सफाई देंगे आप ?
राजा भोज – मैं नहीं जानता यह कैसी लीला रची जा रही है लेकिन मैं एक सच्चा राजा हूं जो अपनी शर्त अनुसार यह राज – पाठ आपको सौंपना चाहता हूं।
बाजीगर – राजा मुझे आपके राज – पाठ में कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं यहां केवल आपकी चौहदा विद्याओं का घमंड तोड़ने आया था और यह थी मेरी पंद्रवी विद्या जिसे आप अभी तक नहीं जानते।
जाते – जाते जब बाजीगर और बाजीगरनी ने अपने असली रूप दिखाए तो लोगों के सामने जो सवालों का पहाड़ था वह एक तिनके की भाति बिखर गया। बाजीगर और बाजीगरनी के भेष में आए कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव और माता पार्वती थे।
दोस्तों भाग-3 में आप पढ़ेंगे, जब राजा भोज पन्द्रवीं विद्या सिखने के लिए अपनी यात्रा शुरू करते है तब वह किन – किन बाधाओं को पार कर पन्द्रवीं विद्या सिखने में सफल होते है। कमेंट करके जरूर बताये यह भाग आपको कैसा लगा ?