Raja Bhoj Hindi Kahani Part-5
नाई ने छल द्वारा खुद को तो राजा भोज बना लिया लेकिन राजा भोज बेचारे तोता बनकर उसी बियाबान जंगल में भटकते रहे। धोखेबाज नाई रात – दिन पैदल सफर करता हुआ राजा भोज की नगरी के द्वार पर जा पहुंचा। वहां मौजूद पहरेदारों ने जैसे ही राजा भोज को देखा उन्होंने तुरंत इसकी सूचना दरबार में पहुंचाई। यह संदेशा सुन दरबार के सभी मंत्री गण व अन्य सदस्य प्रसन्नता से व्याकुल होकर बैंड – बाजों, फूल – माला व अन्य आदर सम्मान की सामग्री लेकर अपने राजा का भव्य स्वागत करने के लिए द्वार पर पहुंचे।
परिणाम स्वरूप हुआ यही कोई भी व्यक्ति उन्हें नहीं पहचान पाया कि यह असल में राजा भोज है या कोई ओर। राजा का खूब जोरों – शोरों से स्वागत किया गया। उनके आने की खुशी में महल को एक सुंदर दुल्हन की तरह सजा दिया गया। पूरे राज्य में सूचना पहुंचा दी गई की महाराज अपना जरूरी कार्य निपटाकर बाहरा वर्ष बाद अपनी नगरी में वापस लौटे हैं।

चूकिं नाई महल में मौजूद सभी मंत्री गण और अन्य सदस्यों को पहले से ही जानता था इसीलिए उसे उनके साथ विचार-विमर्श करने में किसी भी उलझन का सामना नहीं करना पड़ा। सभी लोग इतने लंबे समय के बाद अपने राजा से विचार-विमर्श कर काफी प्रसन्न थे। दरबार में सभी जन से अच्छी तरह मिलजुल कर राजा भोज जो कि असल में नाई था महल की ओर चल दिया। महल के द्वार पर पहुंचा तो वहां काफी सुंदर छवि की बांदिया( नौकरानी ) उसका स्वागत करने के लिए अपने हाथों में आरती की थाली और फूल लिए खड़ी थी।
लेकिन राजा बना नाई रानी को वहां मौजूद न देखकर बोला, ‘रुक जाओ बांदियों हम तब तक अंदर नहीं आएंगे जब तक कि हमारी रानी सत्यवती हमारा स्वागत करने नहीं आ जाती। राजा का आदेश सुन तुरंत रानी सत्यवती को बुलाया गया। रानी सत्यवती अपने हाथों में आरती की थाली लेकर वहां चली आई।
किंतु रानी सत्यवती वहां आकर चुपचाप एक तरफ खड़ी हो गई तब राजा भोज बना नाई ने कहां, क्या बात है रानी, क्या आप हमें देख कर खुश नहीं है ? हम कितने वर्ष बाद आपके पास वापस लौटे हैं। नजदीक आइए हमारी आरती करिए और खुशी-खुशी हमें अपने कक्ष में लेकर चलिए।
सत्यवती – महाराज मैं आप की आरती भी करूंगी और खुशी-खुशी आपको हमारे कक्ष में भी लेकर चलूंगी, किंतु आप पहले हमें यह बताइए जब आप जरूरी कार्य से जा रहे थे, तब हमें क्या कहकर गए थे।
राजा( नाई ) – रानी ऐसी बेवकूफी भरी बातें आप पर शोभा नहीं देती। भलां बाहरा वर्ष पहले की छोटी – मोटी बातें याद थोड़ी रहती हैं। आप आइए हमारी आरती करिए।
सत्यवती – कभी नहीं पहले आप हमें उस वार्ता का परिचय दीजिए तभी हम आपको अंदर आने की अनुमति देंगे।
राजा बने नाई ने मन ही मन सोचा यह रानी तो बहुत ही तेज और उलझि हुई लगती है। यहां तो दाल गलने वाली नहीं है, फिर नाई ने अपना रुख भानुवति के महल की तरफ कर लिया। जब नाई रानी भानुवति के महल के द्वार पर पहुंचा तो देखा कि भानुवति पहले से ही राजा के स्वागत के लिए आरती का थाल लेकर खड़ी थी। वह राजा को इतने लंबे समय के बाद देखकर काफी प्रसन्न थी। उसने खुशी-खुशी उसकी आरती की और अपने कक्ष में ले गई।
रानी भानुवति के महल में नाई ने खूब सुख – सुविधाओं का आनंद उठाया। धीरे-धीरे आधी रात हो गई, भानुवति को तो नींद आ गई किंतु नाई को कहा नींद आने वाली थी। अब उसके जहन में एक डर बैठा जा रहा था, एक चिंता सताए जा रही थी। वह चिंता थी उस तोते की क्योंकि उस तोते में खुद राजा भोज बसे थे जो मनुष्य की भांति बोल सकते थे। अब उसका यही डर था कि कहीं वह तोता उड़ता – उड़ता नगरी तक ना आ पहुंचे, कहीं मेरे सारे भेद न खुल जाए।
इस समस्या से निदान पाने के लिए नाई एक खतरनाक योजना बनाने लगा। यहां तो नाई अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए योजना पर योजना बनाने लगा।

दूसरी तरफ राजा भोज जो बेचारे अभी भी एक तोता बन कर उसी बियाबान जंगल में भटक रहे थे। तो आइए अब एक नजर डालते है उस तोते पर जो बेचारा भुख और प्यास के कारण इधर – उधर भटक रहा था। तोता पानी की तलाश में भटकने लगा आखिरकार वह एक बावड़ी पर पहुंचा जहां पर 99 तोते पहले से ही रहते थे। 99 तोतो ने देखा आज बावड़ी पर एक नया हि तोता आया है और कुछ ज्यादा ही प्यासा है बेचारा पानी पिए ही जा रहा है।
उस नए तोते को देख सारे तोते खुश हो गए और आपस में बात करने लगे कि चलो इससे दोस्ती करते हैं, अगर यह हमारा दोस्त बन गया तो हम पूरे 100( सौ ) तोते हो जाएंगे। फिर सारे तोते राजा भोज बने हुए तोते के पास आ गए और अपनी तोतिया भाषा में राजा भोज से बात करने लगे। हालचाल पूछने लगे चूंकी राजा भोज पंद्रवी विद्या निदान थे तो वह तोतो की भाषा भी जानते थे।
राजा भोज ने उन्हें तोतिया भाषा में बताया कि देखों दोस्तों मैं अकेला हूं और मेरा कोई परिवार भी नहीं है। मैं दुनिया भ्रमण के लिए निकला हूं, अब – जब आप सब मुझसे दोस्ती करना चाहते हो तो मैं तैयार हूं। मैं आप सब के साथ ही रहूंगा। सारे तोते बहुत ही खुशी हुए और हंसी खुशी सब एक साथ रहने लगे। अब प्रतिदिन राजा भोज उन्हें अच्छी-अच्छी बातें बताते और किस्से कहानियां सुनाते।
इस कारण सभी तोते सोचते की यह तोता बहुत ही समझदार है इसके आने के बाद हमें पानी की तलाश में भी नहीं भटकना पड़ता। यह हमें उसी जगह लेकर जाता है जहां पानी तैयार मिलता है। इस कारण सभी तोते राजा भोज की इज्जत करने लगे और एक दिन ऐसा भी आया जब सारे तोतो ने मिलकर राजा भोज को अपना मुखिया घोषित कर दिया।
अब जब राजा भोज उन तोतो के साथ जुड़ गए तो उन सब का समय अच्छा गुजरने लगा क्योंकि एक पंद्र विद्या निदान तोता उनके बीच मौजूद था जो किसी भी समस्या को आने से पहले ही भाप लेता था। उसके रहने से सभी तोते सुरक्षित महसूस करने लगे। लेकिन अब इन सभी तोतो के आगे आने वाली थी एक ऐसी समस्या जिसने इन्हें वन – वन भटकने और अपनी जान बचाकर भागने पर मजबूर कर दिया।
यहां राजा भोज बने नाई की योजना बनकर तैयार हो चुके थी। उसने अपने राज्य में घोषणा करवाई कि सभी मंत्रियों से कह दो महाराज का हुक्कम है तुरंत सभा लगाई जाए। महाराज की घोषणा सुनते ही सभी मंत्री गण, द्वारपाल, सेनापति और रानियां दौड़े चले आए।
जब सभी सभा में मौजूद हो गए तो राजा ने आदेश दिया कि जहां तक हमारे राज्य की सीमा है वहां तक प्रजा – जनों में संदेश भिजवा दो कि राजा का हुकुम है जो भी नर – नारी, बूढ़ा – जवान तोता मारकर हमारे पास लाएगा उसे एक तोते के बदले एक सोने का सिक्का दिया जाएगा, जो दो लाएगा उसे दो, जो दस लाएगा उसे दस और जो पच्चास लाएगा उसे पच्चास सोने के सिक्के दिए जाएंगे।

राजा का यह हुकुम सुनकर सभी दरबारी अचंभित रह गए कि यह राजा को क्या हो गया ? अचानक तोते मरवाने का आदेश दे रहे हैं किंतु सभी केवल सोच सकते थे, कुछ पूछ नहीं सकते थे क्योंकि यह राजा का हुकुम था।
पर जो भी हो जैसे ही यह समाचार प्रजा – जन में पहुंचा तो सभी निठल्ले लोग तोते पकड़ने निकले लिए, श्याम तक कोई एक तोता लेकर दरबार में आ रहा था, कोई दो, कोई दस जो जितनी संख्या में तोते लाता उसे उतने ही सोने के सिक्के दिए जाते। अब यह समाचार धीरे-धीरे आसपास के नगरों में भी फैल गया कि फला राजा एक तोता मारने के बदले में एक सोने का सिक्का दे रहा है।
बेचारे तोते समझ नहीं पा रहे थे कि हमारा कसूर क्या है ? हमें क्यों मरवाया जा रहा है ? अब यह समाचार धीरे – धीरे राजा भोज के पास भी पहुंच गया कि राजा( नाई ) ने तोते मरवाने का हुक्म दिया है। वह चौकन्ना हो गया और सभी 99 तोतो को बुलाकर बोला, होशियार हो जाओ मुसीबत हम पर आने वाली है।
दोस्तों भाग 6 में आप पढ़ेगे जब एक शिकारी की नजर इन 100 तोतो पर पड़ती है, तो कैसे राजा भोज उन सभी को उस शिकारी के चुंगुल से बचाते है किन्तु खुद शिकारी के हाथों पकडे़ जाते है। आखिर क्या होता है आगे ? क्या शिकारी इस तोते को राजा भोज बने नाई को शॉप कर सोने के सिक्के लेगा या होने वाला है कुछ ऐसा जो कहानी का रूख ही पलट कर रख देगा ? जानने के लिए बने रहे हमारे ब्लॉग वर्तमान सोच (wartmaansoch) के साथ। कमेंट करके जरूर बताये यह भाग आपको कैसा लगा ?
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राजा भोज चौहदा विद्याओं का घमंड भाग-2
राजा भोज चौहदा विद्याओं का घमंड भाग-3