Naag Lok Ke Raja Basik Ki Kahani Part-9.
इधर तक्षक नाग ने तो अपना डेरा रास्ते में जमा लिया और उधर वैद राज धन्तर राजा पारिक से विदा लेकर 1600 शिष्यों के साथ अपने आश्रम की ओर चल दिए। वही दूसरी तरफ नाग लोक में राजा बासिक ने अपने दुतों को पृथ्वी लोक जाकर तक्षक पर निगरानी रखने का हुक्म दिया ताकि मुसीबत में उसकी सहायता की जा सके।
महाराज का हुक्म सुनकर दुत तुरंत पृथ्वी लोक की ओर चल दिए और पृथ्वी लोक पहुंचकर तक्षक की आंखो में धूल झोंक पास के जंगल में ही छुप कर तक्षक कि निगरानी करने लगे। कुछ देर बाद धन्तर वैद की जमात उसी मार्ग से चली आ रही थी।
आधे शिष्य धन्तर वैद के आगे चल रहे थे और आधे शिष्य पीछे चल रहे थे, बीच में धन्तर वैद बड़े ठाठ से चल रहे थे। उनके कदमों से उड़ती धूल आकाश में एक गोलाकार आकृति बना रही थी। अब जैसे ही तक्षक की नजर उस जमात पर पड़ी तो वह तुरंत उठ खड़ा हुआ और एक बहुत ही सुंदर सोने की छड़ी का रूप धारण कर बीच मार्ग में गिर गया।
इधर जो शिष्य धन्तर वैद के आगे चल रहे थे उन सभी ने छड़ी हथियाने के लिए दौड़ लगा दी, चूंकि छड़ी दूर से ही चमक रही थी इसीलिए उन्हें इसे देखने में कठिनाई न हुई।
छड़ी उठाने के लिए शिष्य ऐसे टूट पड़े मानो जैसे काफी दिन बाद एक भूखे आदमी को खाने की प्लेट मिल गई हो। छड़ी की चमक ने शिष्यों के मध्य तनाव उत्पन्न कर दिया था। हर कोई उसे पाने के लिए उतावला था। एक कहने लगा, ‘यह छड़ी मेरी है मैंने इसे दूर से ही देख लिया था’, दूसरा बोला, ‘लेकिन सबसे पहले मैंने इसे छुआ है इसलिए ये मेरी हुई।’ छड़ी को पाने के लिए उनका लालच इतना बड़ चुका था की अब वे सब झूठ का सहारा लेने लगे थे।
शिष्यों का आपसी संघर्ष देखकर धन्तर वैद भी वहां पहुंच गए और बोले, ‘क्या हुआ शिष्यों आप किस वार्ता को लेकर तनाव कर रहे है ?’ तभी उनमें से एक शिष्य बोला, ‘महाराज ये सभी इस सोने की छड़ी को अथियाने के लिए विवाद कर रहे है।’
वैद राज ने शिष्यों का विवाद समाप्त करने के लिए छड़ी उनसे छीन ली और खुद के गले में टांग ली। अब शिष्यों का झगड़ा खत्म हो गया और वे सभी फिर वैद राज के आगे – आगे चल दिए। दोस्तो छड़ी को अपने गले में डालकर तक्षक का आधा कार्य तो खुद धन्तर वैद ने ही कर दिया था। अब तक्षक ने सोचा एक यही मौका है इसे परलोक पहुंचने का और तक्षक नाग ने अपने असली रूप यानी नाग बनकर वैद राज की गर्दन पर ढस लिया और सरर से झाड़ियों में गायब हो गया।
अब तक्षक तो अपनी जान बचाते हुए भाग गया किंतु धन्तर वैद वही गिर पड़े चूंकि उनकी नजर खुद की गर्दन पर नहीं जा सकती थी इसीलिए वे बेसुध होकर तड़पते रहे।
अपने गुरु की ऐसी दशा देखकर सभी शिष्य रोने लगे। शिष्यों को यू रोता हुए देख धन्तर वैद बोले, ‘पुत्रो मेरी बात ध्यान से सुनो ( सभी शांत हो गए ) मुझे तक्षक नाग ने ढसा है, चूंकि मेरी दृष्टि काटे हुए निशान पर नहीं पहुंच सकती इसीलिए मेरा मरना तय है, मेरे मरने के बाद मुझे धरती में दफना देना और ठीक छः महीने बाद मुझे खोद कर निकाल लेना मैं आपको जीवित मिलूंगा।’
और यदि छ: महीने से पहले ही कोई भयंकर विपदा आन पड़ी तो तुम सभी मुझे निकालकर मेरी सब्जी बनाकर मिल बांट कर खा लेना, जिससे मेरी सारी विधाएं तुम्हारे अंदर आ जाएंगी और तुम सभी धन्तर वैद बन जाओगे। बस इतनी बात बताकर धन्तर वैद ने अपने प्राण त्याग दिए।
सभी शिष्यों का रो – रो कर बुरा हाल था। वे रोते हुए अपने गुरु के लिए समाधि बना रहे थे। जब समाधि खुद कर तैयार हुआ तो नींम के ढेर सारे पत्ते समाधि में डालकर वैद्य जी को दफना दिया गया और सभी शिष्य वहीं बैठ कर छ: महीने गुजरने का इंतजार करने लगे……
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