Naag Lok Ke Raja Basik Ki Kahani Fourth Part.

नाग लोक के राजा वासुकी और राजा परीक्षित की कहानी भाग-4 । Naag Lok Ke Raja Basik Ki Kahani Fourth Part

Naag Lok Ke Raja Basik Ki Kahani Fourth Part-4

अगली सुबह सभी पंडित अपनी – अपनी पोथी – पुस्तक ले और बुजुर्ग पंडित को पालकी में बैठा कर राजा बासिक के दरबार की ओर चल दिए। दरबार का समय हुआ और चौपाल पर जैसे बुजुर्ग पंडित ने समझाया था उसी प्रकार सारे पंडित उनके पीछे बैठ गए। चूंकि बुजुर्ग पंडित सबसे अधिक ज्ञानी थे इसीलिए उन्हें ऊंचे स्थान पर बैठा दिया गया।

अब जैसे ही राजा बासिक दरबार में उपस्थित हुए तो सभी पुरोहित आदर – सम्मान से खड़े हो गए। राजा ने अपनी गद्दी पर विराजमान होने के बाद सभी को बैठने का आदेश दिया।

राजा बासिक – हां तो पुरोहितों हमें बताइए आपने अपनी विद्या से क्या ज्ञात किया है ? हमें कौन – सा रोग हुआ है, और इसके होने का क्या कारण है ?

बुजुर्ग पंडित ( हाथ जोड़ते हुए ) – महाराज हमें आपको बताते हुए बड़ा खेद हो रहा है कि आपको कोढ़ नामक रोग हुआ है, जिसके पीछे एक लंबी कहानी छुपी हुई है।

राजा बासिक – कहानी, कौन – सी कहानी ?

बुजुर्ग पंडित – महाराज गलती माफ करें, किंतु आपने अपनी ही पुत्री को गलत नजरों से देखा है और उसके साथ संभोग करने का मन में विचार किया है इसीलिए आपको इस भयंकर रोग ने अपनी गिरफ्त में लिया है।

राजा बासिक ( गुस्से में ) – ठहर जाओ पंडित, आपका अगला शब्द हमें आपको फांसी की सजा का हुक्म देने पर विवश कर सकता है। यदि आप हमसे उम्र में बड़े ना होते तो हम अभी आपकी गर्दन धड़ से अलग कर देते।

बुजुर्ग पंडित – लेकिन महाराज सत्य यही है और इससे आप दूर नहीं भाग सकते।

राजा बासिक – किंतु मूर्ख पंडित, यह तो समग्र नागलोक जानता है कि हमारे कोई पुत्री ही नहीं है ।

बुजुर्ग पंडित – क्षमा करें महाराज, आपके इस प्रश्न का उत्तर हमारे पास नहीं क्योंकि इसका उत्तर आपको केवल महारानी ही दे सकती हैं। और हां महाराज मेरी बातो पर संकोच मत करना क्योंकि यह रत्ती भर भी गलत नहीं है।

पुरोहितों की बातें अब राजा को धीरे – धीरे समझ में आने लगी थी। राजा को खुद के खिलाफ एक भयंकर षड्यंत्र की महक आने लगी थी, जिसका जवाब केवल रानी के पास था। पुरोहितों की सारी बातें सुनने के बाद राजा बोले, तो इस रोग से निजात पाने के लिए हमें क्या करना होगा ?

बुजुर्ग पंडित – महाराज आप अपनी जिस पुत्री को नकार रहे हैं केवल वही आपको इस रोग से निजात दिला सकती है। आप की पुत्री यानी राजकुमारी को अकेले ही पृथ्वी लोक की यात्रा करनी होगी जहां एक झालरा नामक हुआ है, यदि राजकुमारी उस कुएं से एक मटका जल लाकर आपको स्नान करा दे तो आप स्वस्थ हो जाएंगे, अन्यथा आप जो मर्जी दवा करवा ले, आपका यह रोग कभी भी ठीक नहीं होगा क्योंकि नाग लोक पर इसका कोई उपचार नहीं।

अचानक राजा बासिक के दिमाग में कोई विचार आया और वह खड़े होकर महल की ओर चल दिए और वहां जाकर रानी से बोले, ‘महारानी हम जो भी आपसे पूछेंगे उसका हमे सत्य में जवाब चाहिए, अन्यथा परिणाम अच्छे नहीं होंगे’।

राजा के मुख से ऐसे कड़वे शब्द सुनकर रानी घबराने लगी थी, उनके मन में यह विचार उत्पन्न होने लगा था कि, कहीं महाराज को राजकुमारी के विषय में मालूम तो नहीं चल गया। जो कि आगे सही साबित होने वाली थी।

रानी ( घबराते हुए ) – कहिए महाराज आप क्या पूछना चाहते हैं ?

राजा बासिक – रानी क्या हमारे कोई पुत्री भी है ?

यह प्रश्न सुनते ही रानी के हाथ – पैर कांपने लगे और वह घबराते हुए बोली, ‘थी महाराज किंतु आपने उसे जन्म लेते ही मरवा दिया था, क्या आप यह भूल गए’ ?

राजा बासिक – रानी हमने आपसे पहले ही कहां था, यदि आप हमसे झूठ बोलने की कोशिश करेंगी तो परिणाम बुरे होंगे। हमें अभी इसकी सूचना हमारे राज्य के पुरोहितों ने दी है और आप जानती हैं कि हमारे राज्य के पुरोहित कभी झूठ नहीं बोलते इसीलिए सत्य क्या है हमें बता दिजिए।

रानी शांत खड़े होकर राजा से नजरें चुराने लगी। रानी को चुपचाप खड़ा देखकर राजा बासिक को समझने में ज्यादा समय ना लगा की रानी ने जरूर उनके खिलाफ एक साजिश रची है।

रानी – महाराज, मैं आपको इसका कोई जवाब नहीं दूंगी, आप चाहे तो मेरी गर्दन धड़ से अलग कर सकते हैं या मुझे कोई और सजा भी दे सकते हैं। मैं कोई भी सजा कबुलने के लिए तैयार हूं।

यह बात सुनते ही राजा बासिक की आंखों से आंसू बहने लगे और बोले, ‘रानी भला मैं एक दुखियारा आदमी किसी को क्या सजा दे सकता हूं, मुझे तो अपनी ही जिंदगी की डोर टूटती नजर आ रही है। रानी केवल आपकी सहायता से ही हम इस रोग से निजात पा सकते हैं, यदि आपने हमसे कोई बात छुपाई है तो कृपा हमें बता दीजिए। हम पुरानी सभी बातों को भूलने के लिए तैयार हैं, और आपको भरोसा दिलाते हैं कि आप किसी भी सजा की भागीदार नहीं होंगी’।

फिर राजा बासिक ने पंडितों के साथ दरबार में हुई सारी वार्ता रानी को बता दी।

रानी – किंतु महाराज यदि आप स्वस्थ होने के बाद अपनी बात से मुकर गए तो क्योंकि मैं अपना साथ देने वाले किसी भी साथी को सजा का भागीदार नहीं बनने दूंगी।

राजा बासिक – रानी हम आपको वचन देते हैं, हम आपको और आपका साथ देने वाले को किसी भी सजा का भागीदार नहीं बनने देंगे बल्कि उनके प्रति आदर सम्मान का भाव भी रखेंगे।

( दोस्तों पहले के समय एक वचन का बहुत बड़ा मौल होता था यदि कोई उस वचन को तोड़ता या उस वचन से मुकरता था तो वह बहुत भयंकर कष्टों से गिर जाता था इसीलिए पहले के लोग अपनी बातों से मुकरते नहीं थे। )

रानी – तो ठीक है महाराज, पहले आप मुझे वचन दीजिए तब मैं आपको सारा सत्य बता दूंगी।

राजा बासिक – आका चुकू, बांका चुकू, तेरा वचन चुकू तो धोबी के कुंड में कंकर होकर सुकू। ( यह मंत्र के रूप में एकवचन होता था )

रानी – ठीक है महाराज और फिर रानी ने शीला सेठानी, रतन सेठ, बांदी और खुद रानी चारों ने मिलकर जो योजना बनाई थी वह सारी राजा को सुना डाली और कहां, आज हमारी राजकुमारी 18 वर्ष की हो चुकी हैं और मेरी सहेली शीला सेठानी की हवेली में रहती है।

रानी की बात सुनने के बाद राजा सोच में पड़ गए और अपने माथे पर थप्पी मार कहने लगे, यानी हमारे पंडित बिल्कुल सही कह रहे थे फिर राजा को वह दृश्य याद आ गया जब वे रतन सेठ की हवेली के आगे से गुजर रहे थे और हवेली की छत पर एक खूबसूरत कन्या अपने के सुखा रही थी। राजा को अपनी गलती का एहसास अब हो चुका था।

राजा ने अपने आंसू पोछते हुए प्रसन्नता के मुख से रानी से पूछा, ‘रानी आपने हमारी राजकुमारी का नाम तो बताया ही नहीं’ ?

रानी – महाराज पंडितों ने उसका नाम निहालदे रखा है।

राजा – वाह जैसी हमारी राजकुमारी सुंदर वैसा ही उसका नाम, अतिसुंदर।

राजा बासिक ने अपने वचन अनुसार ढोल – नगाड़ो व बैंड – बाजों के साथ राजकुमारी और सेठ – सेठानी का महल में भव्य स्वागत किया।

दोस्तों अब नाग लोक में तो बहुत खुशीयां मनाई जा रही थी, आदर – भाव व अभिवादन किए जा रहे थे, शीला व रतन सेठ का बहुत बड़ा सत्कार किया जा रहा था, रानी अपनी निहालदे पर बहुत लाड़ – प्यार लटा रही थी।

वहीं दूसरी तरफ पृथ्वीलोक के राजा पारिक के दरबार में अभी भी सन्नाटा छाया हुआ था। राजा पंडितों से विचार-विमर्श कर रहे थे कि हमारा परीक्षित 18 वर्ष का बालिक हो चुका है, अब हमें आगे क्या कार्यवाही करनी चाहिए ?

उनमें से एक पंडित ने अपनी राय देते हुए कहां, ‘महाराज हमारे विचार से तो अब वह वक्त आ चुका है जब राजकुमार परीक्षित को सारी बातें बता दी जाए।’ राजा पारिक भी इस निर्णय से सहमत हुए और राजकुमार परीक्षित को सभा में बुलाने का आदेश दिया। थोड़ी देर बाद राजकुमार परीक्षित सभा में उपस्थित होते हैं और राज्य पारिक, पुरोहितों और मंत्रियों का अभिवादन करते हुए अपने आसन पर बैठ जाते हैं।

परीक्षित – कहिए महाराज हमें सभा में याद करने का कारण क्या है ?

राजा पारिक – पुत्र हम काफी वक्त से आपको एक बात बताना चाहते थे किंतु हम सही समय का इंतजार कर रहे थे और हमें लगता है आज वह सही समय आ गया है इसलिए आप हमारी बात ध्यान से सुनिए……

परीक्षित – अवश्य पिता जी महाराज, कहिए आप क्या कहना चाहते हैं ?

फिर राजा पारिक ने राजकुमार परीक्षित को नागलोक के राजा बासिक से हुई उस मुलाकात और उनके बीच हुए वादों की बातों की सारी गठरी राजकुमार परीक्षित को सुना दी और बताया कि कैसे अब राजा बासिक अपने वादे से मुकर रहे हैं किंतु हमें वही पुत्रवधू चाहिए क्योंकि हम नहीं चाहते कि आने वाले वक्त में लोग हम पर हंसे और हमें ताना दें कि राजा पारिक नाग लोक वालों से डर गया इसीलिए अपने राजकुमार की शादी कहीं ओर कर रहा है इसलिए पुत्र अब समय आ गया है जब आप हमारी पुत्रवधू को अपने महल में लेकर आएं। इतना कहकर राजा अपने सिंहासन से खड़े होकर वहां से चले गए।

राजा पारिक के वहां से जाने के बाद राजकुमार परीक्षित ने पंडितों से आग्रह किया और बोले, ‘कृपा आप मुझे बताइए कि मैं राजकुमारी को नाग लोक से कैसे ला सकता हूं ?’

पंडित – राजकुमार, राजा बासिक को एक कोढ़ नामक रोग हुआ है जिसकी असहनीय पीड़ा उनसे सही नहीं जा रही। समस्त नाग लोक के ज्ञानी वेद – हकीम भी इसका इलाज नहीं कर सकते। राजा बासिक केवल तभी स्वस्थ हो सकते हैं जब राजकुमारी निहालदे पृथ्वी लोक पर स्थित झालरा नामक कुएं से एक मटकी पानी ले जाकर अपने पिता को स्नान करा दे, अन्यथा वे इस रोग से कभी निजात नहीं पा सकते

और यही वह क्षण है, जब राजकुमारी पृथ्वी लोक पर पानी भरने आएगी वहां से आप राजकुमारी को राजी-राजी ना तो गैर-राजी ला सकते है और हां गलती से भी नाग लोक जाने का निर्णय मत करना क्योंकि वहां एक से एक बलधारी नाग योद्धा है जो आप को जीवित नहीं छोड़ेंगे।

परीक्षित – किसी स्त्री के साथ अप्रिय व्यव्हार करना मेरे संस्कारों में नहीं है, किंतु मैं आपकी सारी बात समझ गया हूं। अब आगे का काम आप लोग मुझ पर छोड़ दीजिए और किसी भी प्रकार की चिंता मत किजिए और पिता जी से कह दीजिएगा कि हम उनकी पुत्रवधू को साथ लेकर ही लौटेंगे।

दूसरी सुबह राजकुमार परीक्षित अपने साथ एक छोटी – सी सैन्य टुकड़ी ले झालरा नामक कुए पर पहुंच गए और वहीं पर अपना तंबू लगाकर डेरा डाल लिया और निहालदे की आने की प्रतीक्षा करने लगे………..

दोस्तों भाग-5 में आप पढ़ेंगे की क्या राजकुमार परीक्षित राजकुमारी निहालदे को अपने साथ लाने में सफल हो पाएंगे यदि हां तो राजा बासिक कभी कोढ़ रोग से स्वस्थ्य नहीं हो पाएंगे ? आखिर क्या निकलेगा इन सब का परिणाम इंसानों और नागो के बीच एक भयंकर युध्द या बचा था अभी कुछ ऐसा जो कल्पना के परे था ?

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नाग लोक के राजा वासुकी और राजा परीक्षित की कहानी भाग-2

नाग लोक के राजा वासुकी और राजा परीक्षित की कहानी भाग-3

नाग लोक के राजा वासुकी और राजा परीक्षित की कहानी भाग-5

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