Moral Stories In Hindi- हम आपके लिए लाए है ज्ञान की कुछ ऐसी कहानियां जो आपने न तो पहले कभी सुनी होगी और न ही कभी पढ़ी होगी। हमने यह कहानियां काफी खोज करके केवल आपके लिए एकत्रित कर प्रकाशित की है, जिन्हे पढ़ने के बाद आपके मन में एक हलचल होगी की ज्ञान और ज्ञानी में कितना फर्क होता है।
एक बार जरूर पढ़े दिमाग को हिला देने वाली 5 शिक्षाप्रद कहानियां।
Moral Stories In Hindi
साधू गाय और कसाई
एक बार एक साधु मंदिर में साधना कर रहे थे। उनकी आँख खुली तो उन्होंने देखा एक गाय उनके आगे से भाग कर मंदिर के पीछे छुप गयी काफी भयभीत थी और थोड़ी देर बाद उसके पीछे-पीछे एक कसाई भी अपने हाथ में तलवार लेकर वहा पहुंच गया। अब वह कसाई साधु से पूछता है बाबा जी क्या अपने यहाँ एक गाय को आते देखा है?
साधु कसाई के हाथ में तलवार देखर समझ गया की आज मैंने गाय के बारे में बता दिया तो गाय का अंत निच्छित है। साधु बड़ी दुविधा में था क्योकि झूठ वह बोलता नहीं और किसी पशु को मरते हुए भी नहीं देख सकता।
अब कसाई के बार-बार पूछने पर वह साधु एक बड़ी उलझन में फैंस गया क्योकि वह झूठ बोकर अपना सत्य का नियम नहीं तोड़ना चाहता और गाय को अपनी आँखों के सामने मरते हुए भी नहीं देखना चाहता।
इस दुविधा से छुटकारा पाने के लिए साधु ने मौन रहना उचित समझा। लेकिन कसाई भी अपनी बात पर टिका रहा साधु के जवाब न देने पर वह वही बैठ गया।
अब साधु ने सोचा ऐसे ये जाने वाला नहीं है, तो उन्होंने अपना साधु-संत वाला दिमाग चलाया।
इस बात पर जरा ध्यान दीजियेगा।
साधु अपनी आँखों की और इशारा करके बोला “जिन्होंने देखा है वह बोल नहीं सकती”।

और अपने होठो की और इशारा करके बोला “जो बोल रहे है उन्होंने देखा नहीं”।

यह बात सुनकर कसाई साधु के चरणों में गिर गया और उनका मुरीद बन गया।
शेख फरीद और चार शिष्य
एक दिन शेख फरीद अपने शिष्यों के साथ एक गांव से गुजर रहे थे। अचानक बीच बाजार में फरीद रुक गया और उसने शिष्यों से कहां देखो एक बड़ा सवाल उठाया। बड़ा तत्व का सवाल है सोचकर जवाब देना एक आदमी गाय को बाँध कर ले जा रहा है। फरीद ने कहा की मैं पूछता हूं “यह गाय आदमी से बंधी है की यह आदमी गाय से बंधा है”?

शिष्यों ने कहा “इसमें कौन सी बड़ी बात है यह कौन-से तत्व का सवाल है और आप जैसे आदमी को मजाक करना शोभा नहीं देता। साफ़ है की गाय आदमी से बंधी है क्योकि बंधन आदमी के हाथ में है और गाय के गले में है।
तो फरीद ने कहा दूसरा सवाल अगर हम यह बंधन बीच में से तोड़ दे तो गाय आदमी के पीछे जाएगी या आदमी गाय के पीछे जायेगा? तब जरा अनुयायी चिंतित हुए उन्होंने कहा “बात तो सोचने जैसी है मजाक नहीं क्योकि बंधन तोड़ दो तो गाय भाग खड़ी होगी और आदमी गाय के पीछे भागेगा”।
तो फरीद ने कहा मैं तुमसे कहता हूं की “आदमी के हाथ में बंधन नहीं है आदमी के गले में है ऊपर से दिखाई पड़ता है की गाय आदमी से बंधी है भीतर अगर देखोगे तो पता चलेगा आदमी गाय से बंधी है”।
शिक्षा:- तुम बंधना चाहते हो, लेकिन बंधन की जिम्मेदारी भी अपने पर नहीं लेना चाहते हो, वह तुम दूसरे पर डाल देते हो। इससे बंधन सुगम हो जाता है। सारा संसार विराट है और बांधे हुए है।
खरगोश और लोमड़ी
एक दिन जंगल में एक लोमड़ी ने एक खरगोश को पकड़ लिया। वह उसे खाने ही जा रही रही थी, सुबह का नाश्ता ही करने की तैयारी थी की खरगोश ने कहा, “रुको”! तुम लोमड़ी हो, इसका सबूत क्या है? ऐसा किसी खरगोश ने इतिहास में पूछा ही नहीं था। लोमड़ी भी सकते में आ गयी। उसे भी पहली दफे विचार उठा की बात तो ठीक है, सबूत क्या है? उस खरगोश ने पूछा, “प्रमाण-पत्र कहां है, सर्टिफिकेट कहां है? “उसने खरगोश से कहां, “तू रुक, मैं अभी आती हूं।

वह गयी जंगल के राजा सिंह के पास, और उसने कहां, “एक खरगोश ने मुझे मुश्किल में डाल दिया। मैं उसे खाने ही जा रही थी तो उसने कहां, “रुक, सर्टिफिकेट कहां है? सिंह ने अपने सर पर हाथ मार लिया और कहां की आदमियों की बीमारी जांगल में भी आ गई। कल मैंने एक गधे को पकड़ा, वह गधा बोला
की पहले सबूत प्रमाण-पत्र दिखाओ की तुम सिंह हो? पहले तो मैं भी सकते में आ गया की आज तक किसी गधे ने पूछा ही नहीं। इस गधे को क्या हो गया? वह आदमी के सत्संग में रह चूका था।
सिंह ने कहां, मैं लिखे देता हूं, उसने लिखकर दिया की यह लोमड़ी ही है। लोमड़ी गई, बड़ी प्रसन्न, लेकर सर्टिफिकेट खरगोश बैठा था। लोमड़ी को तो शक था की भाग जायेगा- की सब धोखा है। लेकिन खरगोश बैठा था, खरगोश ने सर्टिफिकेट पढ़ा। लोमड़ी के हाथ में सर्टिफिकेट दिया और भाग खड़ा हुआ। पास के ही बिल में जाकर छुप गया। लोमड़ी सार्टिफिकेट के लेन-देन में लग गई और उस बिच वह खिसक गया।
वह बड़ी हैरान हुई। वह वापस सिंह के पास गई और बोली, यह तो बहुत मुश्किल की बात हो गई। सर्टिफिकेट तो मिल गया, लेकिन वह खरगोश निकल गया। तुमने गधे के साथ क्या किया था? सिंह ने कहां की देख, जब मुझे भूख लगी होती है, तब मैं सर्टिफिकेट की चिंता नहीं करता, पहले मैं भोजन करता हूं। वही काफी सर्टिफिकेट है की मैं सिंह हूं।
और जब मैं भूखा नहीं होता, तो मैं सर्टिफिकेट की बिलकुल चिंता नहीं करता। मैं सुनता ही नहीं मगर यह बीमारी जोर से फ़ैल रही है।
शिक्षा:- आदमी में यह बीमारी बड़ी पुरानी है, जानवरो में शायद अभी पहुंची होगी। बीमारी यह है की तुम दुसरों से पूछते हो की मैं कौन हूं। जब हजारों लोग जय-जयकार करते है, तब तुम्हे सर्टिफिकेट मिलता है की तुम कौन हो? जब कोई तुम्हे उठाकर सिंघासन पर बैठा देता है, तब तुम्हे प्रमाण-पत्र मिलता है की तुम कुछ हो। दूसरों से प्रमाण-पत्र लेने की जरूरत है? दूसरों से पूछना आवश्यक है की तुम कौन हो?
भिखारी और युधिष्ठिर
महाभारत की एक छोटी सी कथा है: एक भिखारी ने भीख मांगी। युधिष्ठिर कुछ काम में लगे थे; कहां, कल आ जाना। भीम पास में बैठा था। उसने उठाया एक ढोल और जोर से बजाया, और भगा गांव की तरफ। युधिष्ठिर ने कहां, “तू क्या कर रहा है? क्या हो गया है?
उसने कहां, “मैं गांव में खबर कर आंउ के मेरे भाई ने समय को जीत लिया, कल का आश्वासन दिया है। भिखारी से कहां, है की कल आ जाना। इसका मतलब की कल हम यहां रहेंगे। इसका मतलब की कल तू भी रहेगा। मेरे भाई ने काल को जीत लिया इतनी बड़ी घटना घट गयी है, तो मैं जरा ढोल पीटकर गांव में खबर कर आंउ।”
युधिष्ठिर को बात समझ में आ गई। दौड़े, भिखारी को वापस ले आए और कहां, “क्षमा कर। कल का क्या भरोसा, तू अभी ले जा।”
शिक्षा:- अकड़ मत कर की तू सब जनता है। ऐसे जाननेवाले बहुत डूब मरे है। यह बड़ा प्यारा वचन है! मन बड़ा सायना है; हर चीज़ में सलाह देने को तैयार है- वहां भी जहां कुछ जनता नहींच हर बात में गुरु बनने की तैयारी है- मन शिष्य नहीं बनाना चाहता, गुरु बनने को सदा तैयार है। कूड़ा-करकट इकठ्ठा कर लेता है यहां- वहां से। इंसान को अपने मन पर काबू पाना बहुत जरूर है।
एक ईसाई पादरी
एक छोटे से गांव में ऐसी घटना घटी की एक ईसाई पादरी आया। आदिवासियों का गांव है बस्तर में और आदिवासियों को समझाना हो तो आदिवासियों के ढंग में समझाया जा सकता है। क्योकि बहुत सिद्धांत की बात करने से तो कोई सार नहीं। न शास्त्र वे जानते है न शब्द वे बहुत समझ सकते है। तो उसने एक तरकीब निकली और उसने कई लोगो को ईसाई बना लिया।
उसने तरकीब यह निकली की वह गांव में जाता, थोड़ा बहुत धर्म की बात करता, भजन-कीर्तन करता और फिर दो मुर्तियां निकलता अपने झोले से- एक जीसस की और एक राम की, और दोनों को पानी में डालता है।
एक बाल्टी भरवा लेता और दोनों को पानी में डालता, और कहता की देखो, जो खुद बचता है वही तुम्हे बचा सकता है; जो खुद ही डूब जाये, वह तुम्हे क्या बचाएगा ! राम की मूर्ति लोहे की बना ली थी और जीसस की मूर्ति लकड़ी की बना ली थी। तो जीसस तो तैरते और राम एकदम डुबकी मार जाते।
गांव के आदिवासी समझे की बात तो बिलकुल सच्ची है, तर्क साफ़ है – क्योंकि इन राम के पीछे हम फंसे है, और ये खुद ही डूब रहे है। उसने इस कारण कई लोगों को ईसाई बना लिया।
एक हिन्दू संन्यासी गांव में मेहमान था। वह बड़ा योग्य आदमी था। गांव के लोगों ने उससे भी कहां की यह तो बड़ा रहस्य है, साफ़ है मामला। लेकिन लोग ईसाई हो गए। वह भीतर गया देखने। उसने समझ लिया की मामला क्या है। भरी सभा में जब लोग इकट्ठा हुए तो उसने कहां की ऐसा काम किया जाये; पानी तो ठीक है, आग जलाई जाये – जो बच जाये, वही तुम्हे बचाएगा।
गांव के लोगों ने कहां ये तो बिलकुल साफ मामला है। असली चीज़ तो आग है; पानी में क्या रखा है? वह ईसाई पादरी बड़ी मुश्किल में पड़ गया। उसने बड़ी कोशिश की, की बच निकले लेकिन गांव के लोगे ने पकड़ लिया। उन्होंने कहां, “कहा जाते हो? यह तो परीक्षा होनी ही चाहिए, क्योंकि अग्नि परीक्षा तो शास्त्रो में भी कही है। जल-परीक्षा कभी सुनी है? वे जीसस जल गए।
शिक्षा:- सम्प्रदाय जीते है क्षुद्र तर्कों पर, बहुत छोटे तर्कों पर। बहुत छोटी-छोटी घृणा को जमा कर धीरे-धीरे वे अम्बार खड़ा करते है। एक- एक ईट घृणा की है, दूसरे की निंदा की है, दूसरे को छोटा, बुरा बनाने की है। प्रेम तो कहीं पता भी नहीं चलता और जो घृणा फैला रहे है, वे प्रार्थना कैसे करते होंगे? उनकी प्राथना में भी वही घृणां होगी।
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दिमाग को हिला देंगी ये 5 शिक्षाप्रद कहानियां आपको कैसी लगी कृपा कॉमेंट के माध्यम से जरूर बताए ।
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