kanjus seth story in Hindi
Kanjus Seth Amazing Story In Hindi- हम सब जानते है कि कंजूसी एक बुरी बला है। कंजूसी एक ऐसी चीज है जो दुनिया की नजरों में वक्ति का स्वाभिमान गिराती है।
आज आप जो कहानी पढ़ेंगे वो ऐसे ही एक कंजूस सेठ के बारे में है, जो रात-दिन धनवान बनने के सपने देखता है। भगवान उसे स्वयं वरदान देने आते है किंतु अपनी खाली बुद्धि और कंजूसी की वजह से वह भगवान द्वारा दिए गए पारस पत्थर को भी कंजूसी के तराजू में तोलता है।
एक बार जरूर पढ़ें लोभी लाल सेठ कि कहानी।
एक समय की बात है एक नगरी में एक लोभी लाल सेठ रहता था। वैसे तो आप नाम से ही समझ गए होंगे। लोभी इतना की चमड़ी चली जाए पर दमड़ी ना जाए। मुंजी ऐसा था धूप सर्दी कुछ नहीं देखता, बस भाग दौड़ केवल धन के लिए करता रहता था। उसके दिमाग में बस एक ही बात बैठी हुई थी की किसी तरह बहुत बड़ा धनवान बनू।
सुबह-श्याम, रात-दिन बस हाय-धन, हाय-धन करता रहता था। दुकान में तराजू के पलड़े चमड़े के, तराजू की दांडी लकड़ी की और बाट दूसरे दुकानदारों से उधार मांग रखे। अपना एक पैसा खर्च नहीं करता। मंदिर में जाकर रोज दीपक जलाता और कहता हे शंकर-भोले तु तो बड़ा दयालु है। मुझे एक बार धनवान बनने का मौका दे।
ऐसे ही काफी दिन बीत गए तो एक दिन पार्वती माता शंकर जी से बोलती है, हे नाथ इस लोभी लाल सेठ को देखो रात दिन हाय-धन, हाय-धन करता रहता है। प्रभु मेरे कहने से आप इसको एक बार धनवान बनने का मौका दे, आपकी बड़ी कृपा होगी।
शंकर जी बोले पार्वती तु बड़ी भोली है। इस लोभी लाल को अगर मैंने धनवान बना दिया तो यह दीपक जलाना भी छोड़ देगा। लेकिन पार्वती माता के बार-बार जिद करने पर शंकर जी ने कहां तो ठीक है, मैं इसको एक मौका देता हूं आगे इसकी किस्मत।
भोले-शंकर एक महात्मा का भेष बना कर लोभी लाल के पास आ जाते है और कहते है, हे-सेठ जी मैं एक महात्मा हूं। बहुत दुर से पैदल चला आ रहा हूं। मैं तीर्थ-वर्त करने जा रहा हूं। मेरे पास पारस पत्थर( पुराने जमाने का जादुई यंत्र अगर लोहे को छुए तो सोना बना दे) है, इसको आप जमा कर लो मैं छ: महीने में वापस आऊंगा तो मुझे लोटा देना।
सेठ जी अत्यधिक प्रसन्न होकर बोले ठीक मैं छ: महीने में आपको लोटा दुंगा। महात्मा बोले नहीं सेठ जी पहले मेरी एक शर्त मंजूर करो।
सेठ जी कैसी शर्त?
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महात्मा पहली शर्त आप अपने बही खाते में आज की तारीख लिखों और आने वाली छ: महीने की तारिक लिखों जिस तारीख को मैं आऊंगा उस दिन पारस पत्थर मुझे देना होगा कोई बहाना नहीं चलेगा। छ: महीने बाद आपके पास एक मिनट भी नहीं छोडूंगा।
सेठ ने कहां, ठीक है आप यकीन रखिए मैं आपको आते ही दे दुंगा। इतनी बात करके महात्मा चले गए। लोभी लाल बड़ा खुश हुआ और मन में सोचने लगा अब मुझे धनवान बनने से कोई नहीं रोक सकता। मैं पूरी नगरी का लोहा खरीद कर सोना बना दूंगा।
दूसरे दिन सुबह सेठ जी बाजार गए और लोहे का मोल भाव करने लगे लेकिन ये क्या कल तक जिस लोहे का मूल्य आठ आना सेर था। वह आज दो रुपए सेर हो गया। लोभी लाल दूसरी दुकान पर गया वहां ढ़ाई रुपए सेर बताया। इसी तरह वह हर दुकान पर पूछता रहा और महंगा सुनकर आगे चलता गया।
इस तरह वह पूरा दिन बाजार में घूमता रहा लेकिन लोहा नहीं खरीद पाया क्योंकि लोहे का भाव उसे बहुत ज्यादा लग रहा था। आखिर श्याम हो गई तो सेठ ने सोचा कल सस्ता हो जायेगा तब खरीदेंगे यह कहकर घर चला गया।
अगले दिन सेठ फिर बाजार गया और लोहे का भाव पूछने लगा। पूछते ही उसे करंट सा लगा क्योंकि आज लोहे का भाव साढे़ तीन रुपए सेर था। सेठ निराश होकर अपने घर चला गया और कल का इंतजार करने लगा। अगले दिन वह फिर बाजार जाता है, लोहे का भाव ओर महंगा था। वह फिर घर वापिस आ गया।
ऐसे ही दिन बीतते गए लोहे का भाव दिन-दिन बढ़ता गया और वह एक दिन सस्ता होगा यहीं उम्मीद लगाए बैठा रहा। एसे ही इंतजार करते-करते ना जाने कब छ: महीने गुजर गए और महात्मा दुकान के आगे आ धमका। महात्मा को देख सेठ सन्नन हो गया और कहता है महाराज आप दुकान में बैठिए मैं अभी बाजार जाकर आता हूं।
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महात्मा ने कहां नहीं मैंने कहां था, मेरे आने के बाद एक मिनट भी नहीं छोडूंगा। ला मेरा पारस पत्थर दे। अब सेठ इधर-उधर ताकने लगा दुकान में भी कोई लोहे का सामान नहीं था। तराजू की दांडी लकड़ी की है, पलड़ा चमड़े का है। आखिर दुखी होकर सेठ ने पारस पत्थर महात्मा को दे दिया। महात्मा वहां से चले जाते है और सेठ जी सिर पकड़ रोने लगता है।
हाय मैं कितना कंजूस हूं, मैं दो रुपए सेर लोहा नहीं खरीद सका। अगर मैं दस रुपए सेर लोहा भी खरीद लेता तो आज मैं सबसे बड़ा धनवान होता।
किसी ने बहुत अच्छा कहा है :- आच्छा दिन पाछा गया प्रभु से कियो ना हेत। अब पछताए क्या हो है जब चिड़िया चुग गई खेत।
कंजूस सेठ कि कहानी आपको कैसी लगी कृपा कॉमेंट के माध्यम से जरूर बताए ।
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