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एक सेठ के दो पुत्र थे। एक सोलह वर्ष का दूसरा अठारह वर्ष का। पिता जी का देहांत हो गया। बच्चों की माता जी ने एक कपड़े में लिपटे लाल अपने बच्चों के हाथ में रखे तथा कहां, पुत्रो यह लाल ले जाओ तथा अपने ताऊ जी (पिता जी के बड़े भाई) को कहना कि हमारे पास पैसे नहीं हैं। यह लाल अपने पास रख लो तथा व्यापार में हमारा हिस्सा कर लो। हम अकेले बालक व्यापार नहीं कर सकते।
दोनों बच्चे माता जी के दिए हुए लालों को लेकर अपने ताऊ जी के पास गए तथा जो माता जी ने कहां था प्रार्थना की। उस सेठ(ताऊ जी) ने लालो को देखा तथा बच्चों की प्रार्थना स्वीकार करके कहां, पुत्र इन लालो को अपनी माता जी को दे आओ, संभाल कर रख लेगी। आप मेरे साथ दूसरे शहर में चलो, मुझे बहुत उधार माल मिल जाता है, वापिस आकर इन लालो को प्रयोग कर लेंगे।
दोनों बालक ताऊ जी के साथ दूसरे शहर में गए। एक दिन ताऊ जी ने एक लाल बच्चों को दिया तथा कहां, पुत्रो यह लाल है, इसे उस सेठ को देकर आना, जिससे कल पचास हजार का माल उधार लिया था तथा कहना कि यह लाल रख लो, हम वापिस आकर आप का ऋण चुका देंगे तथा अपना लाल वापिस ले लेंगे।
दोनों बच्चों ने सेठ को उपरोक्त विवरण कहां तब सेठ ने एक जौहरी बुलाया। जौहरी ने लाल को परख कर बताया कि यह लाल नहीं है, यह तो लालड़ी है, जो सौ रूपये की भी नहीं है, लाल की कीमल तो नौ लाख रुपये होती है। सेठ ने भली-बुरी कहते हुए उस लालड़ी को गली में दे मारा। बच्चे उस लालड़ी को उठा कर अपने ताऊ जी (अंकल) के पास आए। आँखों में आँखु भरे हुए सर्व वृतान्त सुनाया कि एक व्यक्ति ने बताया कि यह लाल नहीं है, यह तो लालड़ी है।
ताऊ जी (अंकल) ने कहां, पुत्र वह जौहरी था। वह सही कह रहा था, यह तो वास्तव में लालड़ी है, इसकी कीमत तो सौ रुपया भी नहीं है। पुत्रो मेरे से धोखा हुआ है। लाल तो यह है, गलती से मैंने ही आप को लालड़ी दे दी। अब जाओ तथा सेठ से कहना मेरे ताऊजी (अंकल जी) धोखेबाज नहीं हैं। लाल के धोखे में लालड़ी दे दी। दोनों भाई फिर गए उसी व्यापारी के पास तथा कहां कि मेरे ताऊ जी ऐसे धोखेवाज व्यक्ति नहीं हैं सेठ जी, गलती से लाल के स्थान पर लालड़ी दे दी थी, यह लो लाल। जौहरी ने बताया कि वास्तव में यह लाल है वह लालड़ी थी।
सामान लेकर वापिस अपने शहर लौट आए। तब ताऊ(अंकल जी) ने कहां, पुत्रो अपनी मात्ता जी से लाल ले आओ, उधार ज्यादा हो गया है। दोनों बच्चों ने अपनी माता जी से लाल लेकर कपड़े में से निकाल कर देखा तो वे लालड़ी थी, लाल एक भी नहीं था। ताऊजी ने बच्चों को लाल तथा लालड़ी की पहचान करवा दी थी। दोनों पुत्रों ने अपनी माता जी से कहां कि माता जी यह तो लालड़ी है। लाल नहीं है।
दोनों बच्चे वापिस ताऊ जी के पास आए तथा कहां कि मेरी माँ बहुत भोली है। उसे लाल व लालड़ी का ज्ञान नहीं है। वे लाल नहीं हैं, लालड़ी हैं। सेठ ने कहां, पुत्रो ये उस दिन भी लालड़ी ही थी, जिस दिन तुम इसे मेरे पास लेकर आए थे। यदि मैं लालड़ी कह देता तो आप की माता जी कहती कि मेरा पति नहीं रहा, इसलिए अब मेरे लालों को भी लालड़ी बता रहा है। पुत्रो आज मैंने आपको ही लाल तथा लालड़ी की परख (पहचान) करने योग्य बना दिया। आपने स्वयं फैसला कर लिया।
शिक्षा- आज कई ज्ञानी अपने तत्वज्ञान को जन-जन तक पहुंचना चाहते है तथा शास्त्रों के प्रणाम देख कर आप स्वयं परख करने योग्य होकर सत्य-असत्य को पहचान सकते है।
दो भाई और एक लालड़ी की यह कहानी आपको कैसी लगी कृपा कॉमेंट के माध्यम से जरूर बताए ।
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