एक दिन महात्मा व्यास जी ने अपने शिष्यों से कहां “बच्चो अब आपकी शिक्षा पूर्ण हो गई है, अब आप देश-विदेश में कहीं भी जाकर अपनी शिक्षा का लोगों में प्रचार कर सकते हो”। यह बात सुनकर सभी शिष्य काफी खुश हुए। अब उनके पास दुनिया में अपना नाम बनाने का अवसर था। महात्मा व्यास जी का आशीर्वाद लेकर वे सब वहां से चले जाते है।
जाने के बाद सब अपनी-अपनी आगे की राय बताने लगे।
एक कहता है “अब अपनी विदया से मैं विश्व में अपना नाम करूंगा और एक ज्ञानी ब्राह्मण की उपाधि प्राप्त करूंगा”।
दूसरा कहता है “मैं तो केवल राज घरानों में अपनी शिक्षा का प्रसार करूंगा जिससे मुझे महल की सुख-सुविधाओं का लाभ मिलेगा।
तीसरा कहता है “मैं भी अपनी शिक्षा से ऐसा ही कुछ करने के लिए उत्सुक हूं”।
चौथा ब्रह्मण अभी शिक्षा में परिपूर्ण नहीं था। उसने तीनों से प्रार्थना की, कि आप तीनों मुझे भी अपने साथ रख लेना। आप तीनों के साथ रहकर मैं अपनी शिक्षा को ओर बड़ाना चाहता हूं। लेकिन तीनों अहंकारी ब्राह्मणों ने उसे अपने साथ रखने से साफ इंकार कर दिया और कहने लगे “तुम हमारे साथ रहोगें तो हमारा अपमान होगा, तुम्हे अभी कुछ नहीं आता”।
तब चौथे ब्रह्मण ने हाथ जोड़कर उनसे कहां “आप मुझे अपने साथ मत रखो किंतु एक नौकर के रूप में तो रख सकते हो”। नौकर के नाम से वे खुश हो गए और उसे अपने साथ रखने को तैयार हो जाते है।
चलते-चलते वे एक जंगल में पहुंचे जहां उन्होंने देखा एक मृत जानवर की हड्डियां रास्ते में पड़ी थी।
एक ब्रह्मण ने अपनी विद्या से जानवर की सारी हड्डियां जोड़ दी।
दूसरे ने अपनी विद्या दिखाते हुए हड्डियों में मांस और चमड़ी लगा दी।
तीसरा अहंकारी भाव से बोला “भला ये भी कोई विद्या है, अब मैं तुम्हे दिखाता हूं इसमें जान कैसे भरते है”। उसकी बात सुनकर चौथे ब्रह्मण कहता है “कृप्या ऐसा न करें न जाने यह किस जानवर का ढांचा है और इसका क्या परिणाम निकलें।
तीनों ब्रहमणों को उसके इस कथन पर बड़ा गुस्सा आया और उन्होंने कहा “एक नौकर को ज्ञानियों के बीच में बोलने की आज्ञा नहीं है।
जैसे ही वह ब्राह्मण जानवर में जान फूकने के लिए मंत्र पढ़ता है। चौथा ब्रह्मण भाग कर पेड़ पर चढ़ जाता है।
जब उन्होंने जानवर में जान फूंक दी तो उन्होंने देखा वह एक घातक शेर था जो काफी गुस्से में था। अपना गुस्सा और भूख मिटाने के लिए उसने तीनों ब्राह्मणों को अपना शिकार बना लिया।
चौथा ब्रह्मण यह सब पेड़ पर चढ़ कर देख रहा था, सब कुछ शांत हो जाने के बाद वह पेड़ से उतरा और रोते-रोते कहने लगा केवल बौधिक ज्ञान होने से कुछ नहीं होता वास्तविक बुद्धि भी होनी चाहिए।
शिक्षा:- इंसान की वास्तविक बुद्धि ही उसे आगे ले जाती है अन्यथा किताबी ज्ञान तो कोई भी प्राप्त कर सकता है।
चार ब्रह्मणों की कहानी आपको कैसी लगी कृपा कॉमेंट के माध्यम से जरूर बताए ।
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